राजस्थान में देश की आजादी से पहले का 88 साल पुराना पारिवारिक संपत्ति बंटवारे विवाद का केस अभी भी चल रहा है। संभवत: यह प्रदेश का सबसे पुराना केस होगा जो रियासतकाल से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने के बाद भी पेंडिंग है। इस मामले में हाईकोर्ट में दूसरे राउंड में पक्षकारों की बहस पूरी हो गई, लेकिन फैसला नहीं आया।
अब हाईकोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझाइश से इस मामले को निस्तारण के लिए मीडिएशन सेंटर भेज दिया है। जिसमें केस की सुनवाई 23 मई को होनी है। संपत्ति बंटवारे का यह केस जयपुर निवासी फूलचंद ने अपने पिता, माता और भाइयों के खिलाफ बंटवारे से असंतुष्ट होकर किया था।
पहले सुप्रीम कोर्ट तक चला केस, अब दूसरे राउंड में फिर हाईकोर्ट में
- यह मामला जयपुर की जवाहरात फर्म सोहनलाल फूलचंद से जुड़ा हुआ है। फूलचंद के पिता सोहनलाल ने चल व अचल संपत्ति का बंटवारा किया था। फूलचंद बंटवारे से संतुष्ट नहीं था और 7 जनवरी 1937 को पिता सोहनलाल, माता गुलाब बाई, छोटे भाई गोपाल लाल व बड़े भाई गोकुलचंद के खिलाफ रियासत के न्यायालय में सिविल दावा किया।
- जयपुर रियासत के तत्कालीन उच्चतम न्यायालय यानि महकमा खास ने 11 जुलाई 1942 को डिक्री दी।
- इस डिक्री को जयपुर के मंत्रीमंडल ने भी स्वीकार कर लिया और 1942 में ही अपनी मंजूरी भी दे दी।
- आजादी के बाद 1974 में जयपुर के तत्कालीन एडीजे कोर्ट-3 ने अंतिम फैसला दिया।
- पक्षकार एडीजे कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 1987 में अपना फैसला दे दिया। लेकिन पक्षकारों ने इसे नहीं माना और मामला हाईकोर्ट की खंडपीठ में पहुंचा।
- खंडपीठ ने 1992में दिए फैसले में अपील निस्तारित कर अधीनस्थ कोर्ट के आदेश को संशोधित कर दिया। वहीं संपत्ति बंटवारे का आदेश दिया।
- हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश पर पक्षकारों में सहमति नहीं बनी और वारिसों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के आदेश को बरकरार रखा।
- हाईकोर्ट के आदेश के पालन में शहर की एडीजे कोर्ट ने पूर्व के डिक्री आदेश को संशोधित कर संपत्ति का बंटवारा कर दिया।
