रणथंभौर दुर्ग की दीवार कई जगह से टूटी पड़ी है। इससे 5-6 माह से टाइगर का यहां मूवमेंट है। ऊपर पानी, भोजन मिल रहा है। लेकिन इंसानों के लिए खतरा है। किले में पहली मौत के बाद हड़कंप मचा तो एएसआई ने 9 जून को ही जवाब भेजा कि वो दुर्ग में प्रवेश करने वाले आगंतुकों की सुरक्षा को लेकर ‘चिंतित’ है। विभाग ने सूरजपोल गेट के पास क्षतिग्रस्त दीवार पर जाल लगाकर अस्थायी रास्ता रोका था।
दीवार के संरक्षण/मरम्मत के लिए टेंडर किया। यह 18 जून को खुलेगा। एक अन्य जगह से क्षतिग्रस्त दीवार के संरक्षण के लिए महानिदेशक से अनुमोदन मांगा है। लेकिन, इसके टेंडर प्रक्रिया तक जाने में डेढ़-दो माह लगेंगे। प्रश्न यह है कि जब काम चल ही रहा है तो प्राथमिकता पर रख अब तक ठीक क्यों नहीं किया गया? पड़ताल में सामने आया कि एएसआई के पास रणथंभौर दुर्ग सहित प्रदेश के 90 स्मारकों के लिए केवल 8.50 करोड़ का बजट है। जीएसटी और खर्च निकालने के बाद यह भी करीब 7 करोड़ रह जाता है। जबकि, पूरी मरम्मत के लिए बहुत पैसा चाहिए। दो करोड़ के काम पहले से चल रहे हैं। मरम्मत की मंजूरी भी एक जगह की मिली है।
दीवार टूटी या मैनेजमेंट फेल? एएसआई के अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वन विभाग हम पर जिम्मेदारी टाल रहा है, जबकि दुर्ग में बाघ हैं तो लोग क्यों ठहरे, वो जवाब दें। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शिखा मेहरा ने कहा कि दीवार की मरम्मत जरूरी है। इसके लिए बार-बार लिखा है।
