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राजस्थान के व्यापारी बिजली केबल की टेस्टिंग से परेशान:वायर की कीमत से ज्यादा महंगा जांच कराना, VIDEO में देखिए प्रोसेस

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राजस्थान में छोटे व्यापारियों को बिजली के पोल तक जाने वाली केबल की टेस्टिंग भारी पड़ रही है। आरोप है कि टेस्टिंग महज 60 मिनट से भी कम समय में पूरी हो जाती है। इसके लिए उपभोक्ताओं से केबल साइज के आधार पर 74 हजार से लेकर 96 हजार तक वसूल किए जा रहे हैं। मांग है कि या तो इसे कम किया जाए या निशुल्क कर दिया जाए। छोटे उद्योग (MSME उपभोक्ताओं) महंगाई की मार झेल पाने में सक्षम नहीं है।

इधर, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश सोमानी ने मांग की है कि जयपुर डिस्कॉम को टेस्टिंग फीस में संशोधन करना चाहिए और विशेषकर कम क्षमता या छोटी यूनिट्स वाले उपभोक्ताओं के लिए शुल्क को यथोचित और व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए। टेस्टिंग व्यवस्था की पारदर्शिता भी जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपभोक्ताओं से किसी प्रकार की अनावश्यक वसूली न हो।

दरअसल, 11 केवी की लाइन मल्टी बिल्डिंग, शोरूम, कॉम्प्लेक्स, इंडस्ट्रीज में इस्तेमाल होती है। जो लोड के ऊपर निर्भर करती है।

जयपुर में स्थित सेंट्रल टेस्टिंग लैब में केबल की जांच की जाती है।
जयपुर में स्थित सेंट्रल टेस्टिंग लैब में केबल की जांच की जाती है।

क्या है सेंट्रल टेस्टिंग लैब

  • जयपुर डिस्कॉम की सेंट्रल टेस्टिंग की एक लैब है। यहां 11KV केबल और ट्रांसफॉर्मर जैसे उपकरणों की क्वालिटी और सुरक्षा मानकों की जांच की जाती है।
  • उपभोक्ता को नया बिजली हाई-वॉल्टेज कनेक्शन लेने से पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि उपयोग में ली जा रही केबल या ट्रांसफॉर्मर डिस्कॉम के निर्धारित तकनीकी मानकों के अनुसार हैं या नहीं।
  • इससे फॉल्ट और आगजनी से बचा जा सकता है। इसीलिए यह टेस्टिंग अनिवार्य की गई है।

क्या है टेस्टिंग की प्रक्रिया

11 केवी और 33 केवी केबल्स की टेस्टिंग जयपुर डिस्कॉम की सेंट्रल टेस्टिंग लैब (सीटीएल) में होती है। इसमें सबसे पहले केबल की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। फिर इसकी मजबूती जांची जाती है। इसके बाद PVC आउटर इंसुलेशन की रेजिस्टेंस और क्रॉस-लिंक्ड पॉलीइथिलीन (XLPE) इंसुलेशन की मोटाई का परीक्षण होता है। हॉट टेस्ट मशीन से टेंपरेचर टेस्ट किया जाता है। अंत में फेस रेजिस्टेंस टेस्ट किया जाता है, जो कंडक्टर की गुणवत्ता का सबसे अहम पैमाना माना जाता है। यह पूरी प्रक्रिया AEN के सुपरविजन में होती है। करीब 1 घंटे का समय लेती है।

सेंट्रल टेस्टिंग लैब के एक्सईएन मुकेश गुप्ता ने बताया- रोजाना यहां 10 से 12 केबल और 2 से 3 ट्रांसफॉर्मर टेस्टिंग के लिए आते हैं। इससे जयपुर विद्युत वितरण निगम को हर महीने 1.25 से 1.5 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिलता है। पिछले एक महीने में ही 160 केबल और 45 ट्रांसफॉर्मर टेस्टिंग के लिए पहुंचे हैं। ऐसे में कोई व्यक्ति यह आरोप लगाता है कि यहां किसी एक ही ब्रांड के केबल के लिए कहा जाता है तो यह आरोप झूठे हैं।

मुकेश गुप्ता ने बताया- हमारे यहां पर टेस्टिंग आने वाले केबल को एक घंटे में कंपलीट कर दिया जाता है। ऐसे में यह कहना सही नहीं होगा कि इसमें हम 10 से 15 दिनों तक का समय लगाते है। कोई केबल ऐसी होती है जो हमारे जांच में सही नहीं पाया जाता तभी उसको रोकते है। इन केबल टेस्टिंग पर निगम हर साल 8% वृद्धि करने के साथ 18% की जीएसटी और जोड़ देता है।

लैब में केबल की मजबूती और कंडक्टर की गुणवत्ता की जांच की जाती है।
लैब में केबल की मजबूती और कंडक्टर की गुणवत्ता की जांच की जाती है।

MSME उपभोक्ता क्या कहते हैं

ट्रांसफॉर्मर से भी महंगी: उपभोक्ताओं का कहना है कि मीडियम इंडस्ट्रियल पावर (MIP) या 11KV कनेक्शन लेने से पहले जयपुर डिस्कॉम की सेंट्रल टेस्टिंग लैब (CTL) से टेस्टिंग करवाना जरूरी होता है, लेकिन यहां फीस इतनी ज्यादा हो गई है कि केबल से भी महंगी पड़ रही है।

एक साल में ही टेस्टिंग फीस काफी बढ़ी: जयपुर डिस्कॉम की इस लैब में हर साल कंपाउंड रेट पर 10% की बढ़ोतरी की जाती है, जिससे पिछले एक साल में ही टेस्टिंग फीस काफी बढ़ चुकी है। अभी 11KV की केबल टेस्टिंग के लिए 76 हजार रुपए तक चार्ज किए जा रहे हैं, जबकि इस केबल की कीमत ही 20 से 30 हजार रुपए तक होती है। इसी तरह 11KV डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर की टेस्टिंग फीस 42 हजार रुपए पहुंच गई है।

जयपुर डिस्कॉम में 11 केवी के कुल 20267 कनेक्शन वाले उपभोक्ता हैं। वहीं, 7665 हाई टेंशन वाले उपभोक्ता है। कुल 27932 11 केवी कनेक्शन वाले उपभोक्ता अकेले जयपुर डिस्कॉम के हैं। जिन्हें सेंट्रल टेस्टिंग लैब से 11KV केबल और ट्रांसफॉर्मर जैसे उपकरणों की क्वालिटी और सुरक्षा मानकों की जांच करवानी होती है।

टेस्टिंग के नाम पर डबल खर्च, बाजार में भी महंगी मिलती है केबल

उपभोक्ताओं का कहना है कि जयपुर डिस्कॉम की ओर से 11KV 120 स्क्वायर एमएम की एक तय ब्रांड और साइज की केबल को ही अनिवार्य किया गया है। ऐसे में उन्हें मजबूरी में वही केबल लेनी पड़ती है, जो बाजार में भी महंगी मिलती है। ऊपर से लैब में टेस्टिंग के लिए 76 हजार रुपए जमा करने की अनिवार्यता ने अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा दिया है।

कुछ उपभोक्ताओं ने यह भी बताया कि कई बार उन्हें सिर्फ 20 से 30 मीटर लंबी केबल की जरूरत होती है, लेकिन उसकी टेस्टिंग फीस इतनी ज्यादा होती है कि केबल खरीदने से ज्यादा पैसा केवल टेस्टिंग में चला जाता है।

उद्योग लगाने वाले परेशान

फोर्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजस्थान चेंबर ऑफ कॉमर्स डॉ अरूण अग्रवाल ने बताया- राजस्थान सरकार एक ओर जहां छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दे रही है, वहीं जयपुर डिस्कॉम की यह व्यवस्था उद्योग लगाने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है।

टेस्टिंग फीस में हो संशोधन की मांग

उन्होंने बताया- 11 मीटर केबल टेस्टिंग के लिए लेते है इसकी कीमत 50 हजार के लगभग आती है। फिर टेस्टिंग चार्ज 76 हजार रूपए आती है। इससे उपभोक्ताओं पर अनावश्यक रूप से एक से डेढ़ लाख रूपए का आर्थिक बोझ डाल दिया जाता है। पूरी केबल में से छोटा सा टुकड़ा लेकर उसकी जांच करते है जिससे वह केबल भी किसी काम की नहीं बचती। पहले हीं कोई उपभोक्ता जब केबल खरीदता है तो वह सभी मानकों के अनुरूप और अच्छी क्वालिटी के केबल लेकर आता है। लेकिन इसके बावजूद टेस्टिंग के नाम पर अनावश्यक रूप से यह फीस वसूली जा रही है। जिससे सभी उपभोक्ता नाराज है।

जगदीश सोमानी ने बताया- बीच में विभाग की ओर से यह आदेश जारी हो गया था कि इस टेस्टिंग को MSME के लिए फ्री कर दिया जाए। लेकिन यह आदेश दो ही दिन में वापिस ले लिया गया। ऐसे में लगता है कि यह किसी दबाब में या किसी फर्म को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से यह किया जा रहा है।

मंत्री बोले- फीस ज्यादा ली जा रही

इस पूरे मामले को लेकर हमने राजस्थान उर्जा राज्य मंत्री हीरालाल नागर से बात की तो उन्होंने कहा- फीस ज्यादा ली जा रही है इसके बारे में जानकारी प्राप्त हुई है। इस पर चर्चा कर रहे हैं।

बिजली विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया – केबल की टेस्टिंग बिजली कंपनी बनने से पहले सन 2000 तक विभाग खुद ही करवा के देता था। लेकिन इसमें समस्या आती थी कि हर बार विभाग के पास मटेरियल के शॉर्टेज रहते थे। इस कारण उस समय विभाग ने आदेश जारी कर उपभोक्ताओं से बाहर से मटेरियल खरीदने को कहा। लेकिन उसमें शर्त डाली गई कि इसकी टेस्टिंग विभाग करेगा।

यहीं से पूरा विवाद शुरू हुआ, क्योंकि इसकी टेस्टिंग फीस को हर साल लगभग 10 प्रतिशत सालाना बढ़ाने का आदेश जारी किया गया। ऐसे में शुरुआत से लेकर अब तक फीस बढ़ते बढ़ते 96 हजार तक पहुंच चुकी है।

M 24x7 News
Author: M 24x7 News

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