राजस्थान हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। फैसले में जस्टिस मनोज कुमार गर्ग और जस्टिस रवि चिरानिया ने कहा- गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास है। सबूतों की भी कमी है। कोर्ट ने फैसले में दुश्मनी को लेकर भी कमेंट किया। सबसे पहले पढ़िए वो टिप्पणी…
यह एक स्थापित नियम है कि दुश्मनी एक दोधारी हथियार है। एक तरफ यह मकसद देती है, तो दूसरी तरफ इससे झूठे इल्जाम लगने की संभावना भी बनी रहती है।

केस सिरोही के पिंडवाड़ा थाना क्षेत्र का है। साल 2016 में आबूरोड (सिरोही) अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी संजय कुमार को अपने पड़ोसी को हत्या का दोषी माना था। उसे आजीवन कारावास और 25,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
सबसे पहले जानिए – क्या है पूरा मामला
20 अप्रैल 2015 को पिंडवाड़ा थाने में संजय झा के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया गया था। आरोप था कि संजय ने पड़ोसी मदन की 19 अप्रैल की रात करीब 10 बजे पिकअप से कुचलकर हत्या कर दी है।
इन दोनों के बीच लंबे समय से दुश्मनी थी। दरअसल, संजय पर मदन की पत्नी से छेड़छाड़ के आरोप में दोनों में दुश्मनी हुई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार 19 अप्रैल की शाम करीब 7 बजे संजय ने रंजू झा को धमकी भी दी थी कि वे मदन को मार देगा।
इसलिए हत्या का आरोप संजय पर था। साल 2016 में उसे निचली अदालत ने सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट ने कहा- गवाहों के बयानों में खामी
हाईकोर्ट ने कहा मुख्य गवाह संजीत झा (शिकायतकर्ता) ने कहा था कि उसे पत्रकार विक्रम पुरोहित ने फोन पर घटना की सूचना दी थी, लेकिन वो पत्रकार कोर्ट में गवाही देने नहीं आया।
दूसरी ओर मृतक की पत्नी रंजू झा ने कहा था कि उसे परवेज ने घटना की जानकारी दी थी। जबकि परवेज ने कहा कि- वो मृतक को नहीं जानता और न ही उसे पता कि किसने उसे टक्कर मारी। यह रंजू झा के दावे को झुठलाता है।
सबूत काफी नहीं- हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि मामले में सबूत अधूरे हैं। न तो ‘लास्ट सीन थ्योरी’ सिद्ध हुई और न ही मजबूत सबूत मिले हैं। पिकअप वैन पर पेंट के निशान और साइकिल की टक्कर के सबूत अकेले दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
हाईकोर्ट ने संजय कुमार को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है, लेकिन वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हो। कोर्ट ने संजय कुमार पर जुर्माना भी लगाया है।







