राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व विधायक जोगेन्द्र अवाना के बेटे हिमांशु अवाना को अदालती आदेश के बाद भी उच्चैन प्रधान के पद पर बहाल नहीं करने के मामले में हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई हैं। जस्टिस गणेशराम मीणा की अदालत ने इस मामले में पंचायतीराज विभाग के एसीएस और आयुक्त से स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा है कि उन्होने अदालती आदेश की पालना में क्या कदम उठाए।
अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या राज्य के अधिकारी न्यायालय के आदेश को लंबे समय तक दबाए रख सकते है?
दरअसल, हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2024 को उच्चैन प्रधान हिमांशु अवाना के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ सरकार की अपील भी 8 मार्च 2024 को खारिज हो गई। लेकिन उसके बाद भी सरकार ने उन्हें बहाल करने के आदेश जारी नहीं किए।

ऐसे मामले में सख्ती से निपटा जाना चाहिए हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह देश एक लोकतांत्रिक राज्य है, जहां शासन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हाथों में है और ऐसे निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल निश्चित होता है। यदि किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को राज्य के अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण संवैधानिक न्यायालय के आदेश के बावजूद भी पद से वंचित रखा जाता है, तो उसके साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी इस न्यायालय के 19 मार्च 2024 के आदेश को तब तक दबाए बैठे रहे, जब तक याचिकाकर्ता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो गया।
इसलिए यह कोर्ट दोनों अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगना उचित समझता हैं।

क्या है पूरा मामला दरअसल, उच्चैन पंचायत समिति के प्रधान हिमांशु अवाना को सरकार ने 11 फरवरी 2024 को पद से निलंबित कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए उनके अधिवक्ता ने इस पूरी कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताया था। उन्होंने कहा था कि भरतपुर के तत्कालीन जिला प्रमुख जगत सिंह ने याचिकाकर्ता के पिता जोगेन्द्र सिंह अवाना के सामने नदबई से विधानसभा चुनाव लड़ा था।
चुनाव परिणाम 3 दिसंबर 2023 को आए थे। वहीं अगले ही दिन प्रधान के खिलाफ जांच कमेटी का गठन 4 दिसंबर 2023 को कर दिया गया। इस प्रारंभिक जांच का आधार तत्कालीन जिला प्रमुख के यूओ नोट को बनाया गया।
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक जांच के बाद 11 फरवरी को रविवार के दिन रात को याचिकाकर्ता को चार्जशीट देकर निलंबित कर दिया गया, जबकि पंचायती राज एक्ट के तहत चार्जशीट के बाद मामले की जांच शुरू होती है, लेकिन यहां नियमों को दरकिनार करके एकतरफा कार्रवाई की गई है। याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया।
इस पर कोर्ट ने 19 मार्च 2024 को निलंबन आदेश पर रोक लगा दी। लेकिन विभाग ने उसकी पालना नहीं की। वहीं इस बीच 12 अगस्त 2025 को हिमांशु अवाना के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें पद से हटा दिया गया।







